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गाँधी परिवार के चमचे…

mujhe bhi kuchh kahana hai
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ये आपने आप में आश्चर्य की बात है कि एक आदमी जो उत्तराखंड कि राजनीती में इतना सक्रिय नहीं था ..और जहाँ तक मेरी जानकारी का सवाल है मैंने चुनाव से पहले उनका नाम भी इतना केवल इतना ही सुना था कि महाशय हेमवतीनंदन बहुगुणा के पुत्र है. बाकी किसी चुनावी दौरे या कैम्पेन के दौरान उनका नाम नहीं आया … और महाशय मुख्यमंत्री की कुर्सी ले बैठे.. जहाँ तक राजनीती का सवाल है खासकर कांग्रेस की ..राजनीती में तर्क नहीं चलते..बल्कि चलता है निजी स्वार्थ और लाभ..
अब यहाँ सोचने वाले बात है कि कांग्रेस को बहुगुणा के मुख्यमंत्री बनाने से क्या लाभ है ..जबकि पूरे चुनावी कैम्पेन के दौरान हरीश रावत ने तोड़ मेहनत करते रहे.. जहाँ तक अन्दर कि ख़बरें हैं.. एक पॉवर कम्पनी ने बहुगुणा की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर 500 करोड़ का दावं लगाया है.. और प्रोजेक्ट के लिए पहले से ही गाँधी परिवार को भनक है या कहें पूरी हिस्सेदारी तय हो चुकी है.. ग़ुलाम नबी आज़ाद ने सबसे कहना शुरू किया कि स्वयं हरीश रावत ने विजय बहुगुणा का नाम प्रस्तावित किया है. अगर ग़ुलाम नबी आज़ाद के स्तर का आदमी झूठ बोले तो क्या कहा जाए. हरीश रावत ने ऐसा कुछ नहीं कहा. इसके पीछे की कहानी ये कि… एक बड़ा औद्योगिक घराना है, जो इंश्योरेंस में भी बड़ा काम करता है, उसने उत्तराखंड में विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए पांच सौ करोड़ रुपये का दांव लगाया. उसने उन सब लोगों को, जो नेतृत्व का फैसला करते हैं, को जिसका जितना हिस्सा होता है, उतना पहुंचाया. जो लोग कांग्रेस को जानते हैं और अंदरूनी ख़बर रखते हैं, उन् सूत्रों से पता चलता है कि विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला इसलिए हुआ है, क्योंकि एक ग्रुप उत्तराखंड में दस हज़ार मेगावॉट का पॉवर प्रोजेक्ट लगाना चाहता है और सौदा यही हुआ है कि विजय बहुगुणा उस पॉवर प्रोजेक्ट को मंज़ूरी देंगे. वह इसके बदले में विजय बहुगुणा को किसी भी तरह से मुख्यमंत्री बनवाएगा. अन्यथा यह कैसे होता कि विजय बहुगुणा अभी मुख्यमंत्री बने भी नहीं थे, बहुमत भी उन्होंने साबित नहीं किया था और उनका बयान आ गया कि उत्तराखंड में बिजली उनकी प्राथमिकता है. बड़े बिजली के काऱखानें उत्तराखंड में लगने चाहिए..
अब अगर कांग्रेस के इतिहास या कहें गाँधी परिवार के इतिहास को खंगाले तो आप पायेंगे कि ज्यादातर उच्च पदों पर गाँधी परिवार अपने राजनितिक टट्टू या कठपुतली बैठाने में माहिर है.. मसलन राष्ट्रपति पद में प्रतिभा देवी सिंह जो रबर स्टंप से ज्यादा नहीं लगती है… महाराष्ट्र में पृथ्वी राज च्वाहन ..इनका नाम वहां के विधायकों को अंतिम दिन पता चला.. और एक बड़ा नाम प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह..
और जब कोई गाँधी परिवार के लिए खतरा साबित हुआ उसके पर कुतर दिए जाते है..इसका उदहारण सीनियर बहुगुणा यानि हेमवती नंदन बहुगुणा अस्सी के दशक में अपने सिद्धांतो की राजनीती करते थे और इंदिरा गाँधी के लिए एक चुनौती हुआ करते थे तो इंदिरागांधी ने उनके खिलाफ अमिताभ को खड़ा करके चुनाव हरवा दिया…
मुझे लगता है हरीश रावत के समर्थन में 21 से अधिक विधायक थे ..वो इस समय बगावत भी कर सकते थे.. और अपनी एक क्षेत्रीय पार्टी भी बना सकते थे.. जैसे महाराष्ट्र में शरद पवार ने NCP बनाके और बंगाल में ममता ने TMC बनाके किया.. मगर मुझे लगता उनमे ममता की तरह राजनीती जुझारूपन और शरद पवार की तरह धन बल नहीं था…
कांग्रेस में जिसका खुद कोई जनाधार नहीं है… तो उसका कोई वजूद नहीं है… वो गाँधी परिवार के रहमोकरम पे पलने वाला कठपुतली है… ऐसे बहुत से नेता हैं दस जनपथ पे जाके के झाड़ू पोछ लगाने वालों के बराबर हैं,,.. चमचों की भांति रहते है… गाँधी परिवार की ताकत यही चमचें हैं… मिडिया के पत्रकारों या विपक्षी पार्टियों के सवालों का जवाब देने के लिए दस जनपथ ने इनकी फौज कड़ी करके रखी है…
राहुल गाँधी देश की सेवा में केवल एक ही बड़ा काम कर रहे हैं….वो है अविवाहित रहने का… अगर वो विवाह कर लेते हैं तो सोनिया गाँधी बाद में बोलेंगी या नहीं बोलेंगी कि मूझे पोता दो… उससे पहले ये दस जनपथ के चमचें पीछे पड़ेंगे राहुल गाँधी के… हमें कांग्रेस का नया अध्यक्ष दो…..
उम्मीद है राहुल गाँधी ऐसे ही अविवाहित रहेंगे है और देश की सेवा करेंगे….

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